Kahani – 1 :
किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी।
सब तरह का आराम था पर मन अशांत रहता था। हर घड़ी उसे कोई न कोई चिंता घेरे रहती थी।
सेठ उदास रहता। एक दिन उसके एक मित्र ने शहर से कुछ दूर आश्रम में रहने वाले साधु के पास जाने की सलाह दी, कहा, ‘वह पहुंचा हुआ साधु है ।
कैसा भी दुख लेकर जाओ, दूर कर देता है । सेठ साधु के पास गया अपनी सारी मुसीबत सुनाकर बोला स्वामीजी मैं जिंदगी से बेजार हो गया हूं। मुझे बचाइए ।
साधु ने ढाढ़स बंधाते हुए कहा. *घबराओ नहीं। तुम्हारी सारी • अशांति दूर हो जाएगी। प्रभु के चरणों में लौ लगाओ।
उसने तब ध्यान करने की सलाह दी और उसकी विधि भी समझा दी, लेकिन सेठ का मन नहीं रमा । वह ज्योंही जप या ध्यान करने बैठता, उसका मन चौकड़ी भरने लगता। इस तरह कई दिन बीत गए।
उसने साधु को अपनी परेशानी बताई। पर साधु ने कुछ नहीं कहा। चुप रह गए। एक दिन सेठ साधु के साथ आश्रम में घूम रहा था कि उसके पैर में कांटा घुस गया।
सेठ वहीं बैठ गया और पैर पकड़कर चिल्लाने लगा, ‘स्वामीजी, मैं क्या करूं? बड़ा दर्द हो रहा है। साधु ने कहा, दर्द हो रहा है। साधु ने कहा, ‘चिल्लाते क्यों हो? कांटे को निकाल दो।
साधु ने जी कड़ा करके काटे को निकाल दिया। उसे आराम मिला। साधु ने तब गंभीर होकर कहा, ‘सेठ, तुम्हारे पैर में जरा सा कांटा चुभा कि तुम बेहाल हो गए, लेकिन यह तो सोचो कि तुम्हारे भीतर कितने बड़े-बड़े कांटे चुभे हुए हैं।
लोभ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष और न जाने किस किसके। जब तक तुम उन्हें उखाड़ोगे नहीं, शांति कैसे मिलेगी? साधु के इन शब्दों ने सेठ के अंतर में ज्योति जगा दी।
उसके अज्ञान का अंधकार दूर हो गया। उसे शांति का रास्ता मिल गया। बात पते की ज्यादा गरम होने पर दिमाग और मशीन दोनों बंद हो जाते।